Gulzar Shabab Shayari | गुलज़ार साहब की शायरियाँ
गुलज़ार साहब, शायरी की दुनिया का एक ऐसा नाम हैं जो अल्फ़ाज़ों को एहसासों में पिरोकर दिलों तक पहुँचाने की कला में माहिर हैं। उनकी शायरी महज़ लफ़्ज़ों का खेल नहीं, बल्कि ज़िंदगी के हर पहलू का आईना है। उनकी शायरियों में मोहब्बत, जुदाई, जिंदगी की हकीकत और मासरे की तस्वीरें उभरती हैं।
इस ब्लॉग में हम गुलज़ार साहब की शायरी की उसी खूबसूरत दुनिया में आपको लेकर चलेंगे, जहाँ हर लफ्ज़ एक नज़्म है और हर नज़्म एक कहानी।
Gulzar Shabab Shayari | गुलज़ार साहब की शायरियाँ
अपना वो है जो किसी और के लिए,
तुम्हे नजरअंदाज ना करे ।
लगता है आज ज़िंदगी कुछ ख़फ़ा है
चलिए छोड़िए कौन सी पहली दफ़ा है ..
नराजगियां तो हिस्सा हैं जिन्दगी का,,
मना लो या खुद मान जाओ ।
चार दिन की जिन्दगी में किस से कतरा के चलूं,
ख़ाक हूं मै, खाक पर, क्या खाक इतरा के चलूं।
मिज़ाज में थोड़ी सख्ती लाजमी है साहब,
लोग पी जाते आगर समन्दर खारा ना होता।
अपने अगर चुनें तो सहन कर लेना
ज़नाब काँटों से बिछड़कर गुलाब गुलाब नही रहता
अजीब मुकाम पर ठहरा है काफिला जिन्दगी का,
सुकून ढूंढ़ने चले थे और नींद ही गवां बैठे…
अपनी पीठ से निकले खंजरों को जब गिना मैंने,
ठीक उतने ही निकले जितनों को गले लगाया था.
दर्द मुझको ढूंढ़ लेता है रोज नए बहाने से,
वो हो गया है वाकिफ मेरे हर ठिकाने से ।
रहने दे एक मुलाकात उधार यूं ही,
सुना है उधार वालों को लोग भुलाया नहीं करते ।
चार दिन की जिन्दगी में किस से कतरा के चलूं,
ख़ाक हूं मै, खाक पर, क्या खाक इतरा के चलूं।
कितनी मोहब्बत है तुमसे, कोई सफाई नहीं देंगे,
साये की तरह रहेंगे तेरे साथ, पर दिखाई नहीं देंगे.!
अपना वो है जो किसी और के लिए,,
तुम्हे नजरअंदाज ना करे ।
जुबान कड़वी और दिल साफ रखता हूँ
कौन कब कहाँ बदल गया सबका हिसाब रखता हूँ।
कटी हुई टहनियां कहां छांव देती हैं,
हद से ज्यादा उम्मीदें हमेशा घाव देती हैं।
आज तक बहुत भरोसे टूटे,
मगर भरोसा करने की आदत नहीं छूटी ।
कभी जब लगे की कोई साथ नहीं खड़ा,,
तो एक दफा आयने में देख कर मुस्कुरा लेना ।