डॉ अमृता पटेल
भारत का सबसे सफल सहकारी प्रयास विशालकाय नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एन.डी.डी.बी.) की चेयरपर्सन डॉ. अमृता पटेल जिसका जन्म 13 नवंबर, 1943 को दक्षिण गुजरात के खेड़ा जिले के विद्यानगर गांव में जन्म अमृता पूर्व वित्त मंत्री व कैबिनेट सेक्रेटरी एच. एम. पटेल की पाँच बेटियों में से एक हैं।
पाँच बेटियों में सबसे छोटी बेटी डॉ अमृता पटेल का जन्म एक ऐसे गुजराती परिवार में हुआ जो चाहते थे कि उनके घर में बेटे का जन्म हो लेकिन को कुछ और ही मंजूर था। लड़के होने की उम्मीद को रखते हुए बच्चे के कमरे को नीले हरे रगों से सजा दिया था और जन्म से पहले ही उन्हें अमृत’ कहकर पुकारा जाने लगा था लेकिन लड़की पैदा होने पर उन्हें अमृता नाम दिया गया।
डॉ अमृता पटेल की पढ़ाई
सन् 1958 में दिल्ली के कॉन्वेंट ऑफ जीसस ऐंड मेरी स्कूल से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1965 में बॉम्बे वेटेरिनेरी कॉलेज से वेटेरिनेरी साइंस में स्पेशलाइजेशन किया। बाद में उन्होंने ब्रिटेन के रोवेट रिसर्च इंस्टिट्यूट से एफ. ए. ओ. फेलोशिप के अंतर्गत एनिमल न्यूट्रीशन (पशु पोषण) में एडवांस ट्रेनिंग ली।
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डॉ अमृता पटेल की करियर की शुरुआत
एनिमल न्यूट्रीशन (पशु पोषण) में एडवांस ट्रेनिंग पूरी करने के बाद डॉ अमृता पटेल ने 1965 में ही कायरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक यूनियन की कंजरी कैटल फीड फैक्टरी में एनिमल न्यूट्रीशन का कार्यभार संभाला उसके बाद सन् 1971 में अमृता प्रोजेक्ट एग्जीक्यूटिव एन.डी.डी. बी. से जुड़ गईं।
उसी दौरान उन्हें करनाल के नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टिट्यूट के लिए एचीवमेंट ऑडिट कमेटी की मदद करने का विशेष कार्य सौंपा गया। सन् 1972 में उन्हें इंटरनेशनल डेयरी कांग्रेस का असिस्टेंट डायरेक्टर नियुक्त किया गया बाद में उन्हें कांग्रेस सेक्रेटेरियट में डिप्टी डायरेक्टर का पद सौंपा गया और फिर सन् 1973 में कांग्रेस के 1975 में खत्म होने तक वह सेक्रेट्री जनरल बनी रहीं। जैसे ही कांग्रेस समाप्त हुई, उन्हें एन.डी.डी. बी. का एडमिनिस्ट्रेटिव व कमर्शियल डायरेक्टर नियुक्त कर दिया गया।
फिर उन्होंने दिल्ली में एन.डी.डी. बी. की रीजनल डायरेक्टर के रूप में भी कार्य किया। सन् 1986 में डॉ. पटेल को एन.डी.डी. बी. के के पद पर नियुक्त किया गया। सन् 1988 में वह मैनेजिंग डायरेक्टर (ऑपरेशंस) बनीं और सितंबर 1990 में वह एन. डी. डी. बी. की मैनेजिंग डायरेक्टर बन गई और उसके बर्फ जब 1998 को कुरियन ने 33 वर्ष लंबी अपनी कमान छोड़ी जो मदर डेयरी को सँभालता था उसके बर्फ इसकी कमान पूरी तरह से डॉ अमृता पटेल के हाथ मे आ गयी थी ।
इस व्यापक दूध डायरी का संचालन व नेतृत्व करनेवाली उसकी चेयरपर्सन डॉ. अमृता पटेल उन असाधारण महिलाओं में से एक हैं, जो आज खुद किसी संस्था से कम नहीं हैं।
डॉ कहती है कि आज हम पाँचों बहनों ने यह साबित कर दिया कि हम लड़कों से किसी भी तरह कम नहीं हैं और आज हम सभी एक ऐसे मुकाम पर हैं, जहाँ देखकर किसी भी माता-पिता को गर्व हो सकता है।
अमृता कहती है कि उनके लिए उनके पिता ही सबसे बड़े मार्गदर्शक व प्रेरणा हैं, उन्होंने उनके अंदर समाज-सेवा, एकता, ईमानदारी, कड़ी मेहनत और एक स्वतंत्र सोच रखने जैसे मूल्यों का संचार किया और साथ-साथ उनकी माँ ने उन्हें घर के काम करने में निपुण बनाया।
चीजों के समन्वय के कारण ही वह विषम परिस्थितियों में भी न रहीं और कदम-कदम पर यह साबित किया कि औरत चाहे तो किसी भी क्षेत्र में सफलता पा सकती है। समाज की रूढियाँ या पुरुषों का मिथ्याभिमान भी उसे आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता है। उनके लिए ताकत का अर्थ है हर समय विश्वसनीयता के उच्च मानकों को कायम रखना।
माता-पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बनें, लेकिन वह डॉक्टर तो बनना चाहती थीं, पर पशु चिकित्सक। निर्णय करने के बाद उनके लिए डिग्री पाना बहुत ही मुश्किल काम था।
एक बार जब उनका कुत्ता बीमार हो गया था वह कहती हैं मुझे उस समय पशु चिकित्सा की कमी अहसास हुआ और मुझे इसी कमी ने पशु चिकित्सक बनने के लिए प्रेरित किया।”
पशुओं की देखभाल और उनके प्रति मेरी चिंता देखकर एक डॉक्टर ने मुझे सिखाया कि कुत्तों को कैसे इंजेक्शन लगाया जाता है।” अमीर पारसियों के केक खानेवाले कुत्तों को इंजेक्शन लगाते-लगाते अमृता के अंदर इस क्षेत्र में और अधिक पैमाने पर काम करने की ललक बलवती होने लगी और वह उस डॉक्टर के साथ किसानों से मिलने उनके खेतों पर जाने लगीं।
वहाँ जाकर उन्हें एहसास हुआ कि किसानों के लिए गाय-भैंसों का क्या महत्त्व है। उनके लिए वे सिर्फ जानवर मात्र नहीं हैं, वे उनकी जीविका के साधन भी हैं, यह देखकर उनके अंदर पशु चिकित्सक बनने का संकल्प और दृढ़ हो गया। पर यह बात उनकी माँ को बहुत नागवार गुजरी और उन्हें डर था कि ऐसे पेशे से जुड़ी लड़की से कोई भी शादी नहीं करेगा ।
एक कहावत है कि जो ठान लिया वो ठान लिया फिर पीछे मुड़कर ना देखना। अमृता ने भी ऐसा ही किया, अपनी डॉक्टर की पढ़ाई करने करने के लिए अमृता साइंस में कोर्स के लिए बंबई चली आईं। अपनी क्लास में एकमात्र लड़की होने के कारण लड़के उनका मजाक उड़ाया करते और उन्हें तंग करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे। उन्हें अपने प्रैक्टिकल्स अकेले करने पड़ते थे, क्योंकि लड़के उन्हें सहयोग देना ही नहीं चाहते थे। पास के गाँवों में फील्ड पर जाने पर जहाँ एक तरफ सारे लड़के एक साथ टोली बनाकर रहते, वहाँ अमृता को किसी दयालु परिवार की कृपा पर रहना पड़ता था।
कई बार उनके मन में आया कि वह बीच में ही कोर्स छोड़कर चली जाएँ, पर फिर उनके अंदर पलती इच्छा उनके पाँव रोक लेती और वह दृढ़ता से अपने काम में लग जातीं।
जब पहली बार ‘अमूल’ में नौकरी करने के लिए उन्होंने डॉ. कुरियन से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि अमूल किसी महिला को नौकरी पर नहीं रखता, यहाँ तक कि टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी पर भी नहीं। इसके बावजूद अपनी इच्छा को पूरी करने की चाह में कई महीनों तक बिना वेतन लिये उन्होंने वहाँ काम किया और बाद में उन्हें तीन महीनों के लिए अस्थायी पद दिया गया और संयोगवश बाद में वह पूर्णकालिक नौकरी में बदल गया, क्योंकि उस क्षेत्र में कोई भी काम करने को तैयार नहीं था।
बाद में उन्हीं डॉ. कुरियन ने अमृता को प्रशासनिक कार्यों के लिए तैयार करने के लिए चुना। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण कार्य था दिल्ली में होने वाली भारत की पहली इंटरनेशनल डेयरी कांग्रेस का आयोजन करना, जिसमें 3,000 से अधिक माननीय लोग भाग लेने वाले थे। यह नौकरी उन्हें इसलिए मिली थी, क्योंकि बहुत सारे उच्च पदाधिकारियों ने नौकरी छोड़ दी थी।
अमृता ने इस काम में अपनी निपुणता को साबित कर दिया और शायद वह समय था, जब औरतों के प्रति सोच में भी बदलाव आया। वह कहती हैं, “शायद डॉ. कुरियन को दिखाई दे गया था कि वेटेनरी निपुणताओं के अलावा भी मेरे अंदर और क्षमताएँ हैं, क्योंकि उन्होंने उस वक्त पहले मुझे आनंद में एडमिनिस्ट्रेशन व कमर्शियल डायरेक्टर बना दिया और फिर दिल्ली में क्षेत्र का अध्यक्ष नियुक्त किया।”
अगर आज भारत दुनिया का सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाला देश है तो इसका काफी श्रेय ‘लाइफटाइम एचीवर अवार्ड’ विजेता अमृता पटेल को भी जाता है।
ऑपरेशन फ्लड द्वारा भारतीय डेयरी किसानों को संसाधन प्रदान कर, दूध के उत्पादन में बढ़ोतरी कर उनके जीवन में सुधार लाने के अतिरिक्त अमृता ने सहकारी विकास कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में महिलाओं की शिक्षा पर भी बहुत जोर दिया। यही नहीं, पुरुषों को भी उन्होंने इस बात से अवगत कराया कि औरतों की शिक्षा का क्या महत्त्व है और औरतों को डेयरी सहकारी समितियों में शामिल होने तथा बतौर एक सदस्य अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया।
यह अमृता का अथक प्रयास ही था, जिसकी वजह से फाउंडेशन फॉर ईकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफ.ई.एस.) की स्थापना हुई-एक ऐसा संगठन, जो पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं के बचाव जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य पर जोर देता है, जो भूमि की जैविक उत्पादकता को बनाए रखते हुए गरीबों की स्थिति में सुधार करने में मदद करता है। उनकी अध्यक्षता में एफ.ई.एस. भारत के छह राज्यों में 1,830 गाँवों का सहयोग पाने में सफल हो गई, जिसकी वजह से वह 1 करोड़ लोगों तक पहुँच लगभग 1,07,000 हेक्टेयर निजी भूमि व वन्य भूमि को सामुदायिक प्रशासन के अंतर्गत लाने में सफल हो पाईं।
अनगिनत राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बोर्ड व समितियों में उनकी उपस्थिति होने के साथ-साथ डॉ. पटेल वन संरक्षण,सहकारी संस्थानों को मजबूत करने, ग्रामीण लोगों का जीवन सुधारने आदि संबंधित मुद्दों पर नीति निर्माताओं व विभिन्न संगठनों के साथ कार्य करती हैं।
‘पद्म भूषण’ और ‘डॉ. नोरमैन बरलॉग अवार्ड’ से सम्मानित अमृता के सामने अनेक चुनौतियाँ आईं। उस समय जब निजी उद्योग व नेस्ले व ब्रिटानिया जैसे एम.एन.सी. ने भारत के दूध क्षेत्र में पदार्पण किया तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करने की थी कि देश के 96,000 डेयरी कॉपरेटिव्स, 170 दूध उत्पादन करनेवाले सहकारी संघ व 15 राज्यों के सहकारी दुग्ध विपणन निकाय मजबूती से अपनी जगह बनाए रखें।
अमृता कहती हैं “जब एन. डी. डी. बी. बिल संसद् में पेश किया गया था, डॉ. कुरियन को निमोनिया के कारण बिस्तर पर थे। इसलिए मैनेजिंग डायरेक्टर होने के नाते मुझे पूरी जिम्मेदारी लेनी पड़ी उसके लिए मुझे मंत्रियों व संसद् सदस्यों से मिलना पड़ता था, ताकि बिल पास हो सके जो मेरे लिए बहुत ही कठिन काम था।
एक वक्त तो ऐसा भी आया, जब मैं हार मानने लगी थी; पर मेरे पिता, जो स्वयं एक संसद् सदस्य थे, ने कहा, ‘तुम हार नहीं मान सकती हो तुम्हें इसे इसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना ही होगा जब तक यह पास नहीं हो जाता, तुम्हें सारे प्रयास करने होंगे। वह मानती हैं कि सफलता पाने के लिए मार्ग में आए रोड़ों को हटाना ही पड़ता है।
डॉ अमृता पटेल को दिए गये अवॉर्ड
वह राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर अवार्ड प्राप्त कर अपनी योग्यता का लोहा मनवा चुकी हैं। वर्ष 2001 में पशुपालन में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया। 4 जून, 2008 को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने फाउंडेशन फॉर ईकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफ.ई.एस.), आनंद की संस्थापक चेयरपर्सन अमृता को ‘इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
उन्हें दुग्धशाला (डेयरी) विकास व पशुपालन के क्षेत्र में दिए अपने योगदान के लिए डॉ. नोरमैन बरलॉग अवार्ड से सम्मानित किया गया। उन्हें सन् 1977 के लिए भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य व पर्यावरण को सुधारने तथा बेहतर पशुपालन को प्रोत्साहित करने के प्रयास व उत्पादकता और आय में बढ़ोतरी करने के लिए वर्ल्ड डेयरी एक्सपो, इंक, मेडिसन, विस्कोन्सिन, अमेरिका द्वारा ‘इंटरनेशनल पर्सन ऑफ द ईयर अवार्ड’ से नवाजा गया।
मैं कोई बिजनेस वूमन नहीं हूँ।” अमृता का कहना है, “मैं दूसरी औरतों को बिजनेस में लगाने के बिजनेस में हूँ, ताकि वे अपनी प्रतिदिन की आय का अर्जन कर सकें। साथ ही हमें यह सुनिश्चित करना है कि हमें भारत में दूध का आयात न करना पड़े। और यही अब मेरे जीवन का लक्ष्य है।”