स्वामी विवेकानन्द की सफलता और सघर्ष की कहानी के 10x नियम , हिंदी में

Published On:
---Advertisement---

 स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12  जनवरी, 1863  को कलकत्ता (अब कोलकाता) हुआ था उनका असल नाम नरेंद्रनाथ था | बचपन से ही उन्हें ध्यान, विचारशीलता और ज्ञान का बहुत शौक था। 1885 में, उन्होंने स्वामी विवेकानंद के रूप में नए वेदांत के प्रचारक के रूप में नया जीवन आरंभ किया। उनके विचार और वाणी ने लाखों लोगों को प्रेरित किया और उन्हें एक महान धार्मिक और राष्ट्रीय नेता के रूप में माना जाता है। 

तीस वर्ष की उम्र में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो, अमेरिका में विश्व धर्म संसद् में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था, “यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सबकुछ सकारात्मक ही पाएँगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।”

39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे उनकी मृत्यु 4 जुलाई, 1902 को हुई, लेकिन उनकी आत्मा हमेशा जीवित रहेगी।



स्वामी विवेकानंद के अनुसार, सफलता के दस नियम इस प्रकार हैं-


नियम 1. लक्ष्य-प्राप्ति करने तक रुको मत

स्वामी विवेकानंद युवाओ को कहते है की उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं। पीछे मत देखो, आगे देखो – अनंत ऊर्जा, अनंत उत्साह, अनंत साहस और अनंत धैर्य – तभी आपके दवारा महान् काम किया जा सकता हैं। कोशिश करते रहो; जब तुम्हें अपने चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार दिखता हो, तब भी मैं कहता हूँ कि कोशिश करते रहो! किसी भी परिस्थिति में तुम हारो मत, बस, कोशिश करते रहो! तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य जरूर मिलेगा, इसमें जरा भी संदेह नहीं।

नियम 2. सब संभव

कभी यह मत सोचिए कि आपके लिए ये करना असंभव है, ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर किसी बात का कोई पाप है तो यह कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं। जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!

नियम 3. लक्ष्य-निर्धारण

सबसे पहला हमारा काम है की हमें अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। स्वामी विवेकानंद कहते है की जिसके जीवन में ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है। हमे इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हमारे लक्ष्य एवं कार्यों के पीछे हमारा उद्देश्य पोसिटिव होना चाहिए।

जिसने अपने जीवन में निश्चय कर लिया, उसके लिए केवल करना शेष रह जाता है। जीवन में एक ही लक्ष्य साधो और दिन-रात उस लक्ष्य के बारे में सोचो और फिर जुट जाओ उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए। हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए।

नियम 4. आत्मविश्वास

अपने जीवन में आपने जो तय किया है या जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे प्राप्त करने करने का एक ही मत्र -अपने आप में विश्वास। आत्मविश्वास सफलता का रहस्य है। यदि हमें अपने आप पर ही विश्वास नहीं है तो हमारे द्वारा किया गया काम  किस प्रकार सफल होगा? इसलिए, जो भी काम करो, आस्था और विश्वास के साथ के साथ करो ।

सफलता के लिए जरूरी है अपने आप पर मान करना, अभिमान करना, विश्वास एवं लगन के साथ जुटे रहना। धैर्य और स्थिरता से काम करना, यही एक मार्ग है। यदि आपका अपने पर विश्वास है, तब प्रत्येक काम में आपको सफलता मिलेगी फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद ये लोग आपको और आपके काम को मानेगा | 

नियम 5. समर्पण

समर्पण का अर्थ है- अपने लक्ष्य के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रत्येक क्षण में उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना। इसलिए किसी भी काम में सफलता पाने के लिए समर्पण अनिवार्य है। दृढ़ निश्चय ही विजय है। ध्येय के प्रति पूर्ण संकल्प व समर्पण रखो।

इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प-शक्ति पर निर्भर है। इसलिए कहते है की अगर आपका उद्देश्य सही और काम सच्ची लगन से किया है तो आपका प्रयास कभी निष्फल नहीं जाता है | इसमें कोई संदेह नहीं कि बड़े कार्य धीरे- धीरे होते हैं; परंतु पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

नियम 6. चरित्र व आचरण की महत्ता

संस्कार, सुविचार, संकल्प, समर्पण व सिद्धता-इस पंचामृत के सम्मिलित स्वरूप का नाम है-सफलता। वही समाज उन्नति और उपलब्धियों के चरम शिखर पर पहुँच सकता है, जहाँ व्यक्ति में चरित्र होता है।  आवश्यक है कि आप चरित्र व आचरण कीमहत्ता को समझें और सभ्यता, शालीनता एवं विनम्रता को अपनाएँ।

नियम 7. संगठन

व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग, सामाजिक प्रगति के लिए कार्य करने की परंपरा जब तक प्रचलित नहीं होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों में सामर्थ्यवान् नहीं बन सकता। वर्तमान समय में सामूहिक आत्मविश्वास के जागरण की अत्यंत आवश्यकता है। उदात्त ध्येय के लिए संगठित शक्ति का समर्पित होना अनिवार्य है। विचारवान् और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव में, इस संसार को संगठित शक्ति ने ही बदला है।

नियम 8. असंभव को भी संभव करना

जीवन में सतत आगे बढ़ते रहना हमारा कर्तव्य है। जीवन- पथ में अनेक बाधाएँ आती हैं; परंतु क्रमशः समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर करके, उससे ऊपर उठकर असंभव को भी संभव किया जा सकता है।

नियम 9. सफलता के माध्यम

आगे बढ़ो और याद रखो – धैर्य, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म सफलता के माध्यम हैं।

नियम 10. पाँच सूत्र

स्वामी विवेकानंद कहते है की आपको जीवन में सफल होना है तो आपको इन पाच सूत्र अपने जीवन में उतरना होगा | जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता-प्राप्ति के लिए आवश्यक है- सद्गुण, सद्व्यवहार, सदाचार, सत् संकल्प। चरित्र-निर्माण के पाँच सूत्र हैं- आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मज्ञान, आत्मसंयम और आत्मत्याग। उपर्युक्त पाँच तत्त्वों के अनुशीलन से व्यक्ति स्वयं के व्यक्तित्व तथा देश व समाज का पुनर्निर्माण कर सकता है।

आप इन्हें भी पढ़ सकते है 

सुंदर पिचाई की सफलता और सघर्ष की कहानी के 10x नियम , हिंदी में

नरेंद्र मोदी की सफलता और सघर्ष की कहानी के 10x नियम , हिंदी में

एलन मस्क की सफलता और सघर्ष की कहानी के 10x नियम , हिंदी में

स्वामी विवेकानंद के बारे में पांच प्रमुख प्रश्नों के उत्तर हैं:

1. स्वामी विवेकानंद कौन थे?

स्वामी विवेकानंद भारतीय संत और योगी थे, जिन्होंने विश्वभर में हिन्दू धर्म और योग की उच्चतम प्राचीनता को प्रस्तुत किया।

2. उनका जन्म कब और कहाँ हुआ था?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता, भारत में हुआ था।

3. उनकी महत्वपूर्ण यात्राएँ और संदेश क्या थे?

उनकी प्रमुख यात्राएँ भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा अमेरिका, यूरोप, जापान, चीन और अफ्रीका में रहीं। उन्होंने ध्यान, समाधि, सेवा, और ज्ञान के माध्यम से मानवता के लिए एकता, शांति, और समृद्धि का संदेश दिया।

4. उनकी मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?

स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ, कोलकाता में हुआ था।

5. उनकी योगदान और प्रेरणा क्या है?

स्वामी विवेकानंद के योगदान में भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान शामिल है, जो आज भी विश्व भर में उनके विचारों और विचारधारा के माध्यम से प्रेरित हैं।

Leave a Comment