सड़क किनारे काले, नीले या सफेद रंग के ही क्यों पत्थर लगाए जाते है
हम सभी ने सड़कों के किनारे रखे हुए अलग-अलग रंग के पत्थर जरूर देखे होंगे जो पत्थर ज्यादातर सफेद, काले, या नीले रंग के होते हैं और जिन पर कुछ संख्या या जगह का नाम लिखा होता है इन्हें आमतौर पर ‘किमी पत्थर’ या ‘मील का पत्थर’ कहा जाता है। ये केवल सड़कों की शोभा नहीं बढ़ाते, बल्कि इनका इस्तेमाल सड़क मार्ग की दिशा और दूरी बताने के लिए किया जाता है। लेकिन सवाल ये की आखिर काले, नीले या सफेद रंग के ही क्यों पत्थर लगाए जाते है।
किमी पत्थर क्या है?
किमी पत्थर (Kilometer Stone) सड़क मार्गों पर लगे हुए ऐसे पत्थर या बोर्ड होते हैं जो यह बताते हैं कि आप किसी स्थान से कितने किलोमीटर दूर हैं। ये पत्थर आमतौर पर लंबवत ( सीधे ) खड़े होते हैं और इन पर दूरी, स्थान का नाम, और दिशा को दर्शाने वाली जानकारी लिखी होती है।
आखिर काले, नीले या सफेद रंग के ही क्यों पत्थर लगाए जाते है।
किमी पत्थरों के अलग-अलग रंग भी उनके अलग-अलग उपयोग को दर्शाते हैं।
1. पीले और सफेद रंग के पत्थर:
ये राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) पर लगाए जाते हैं जिनका पीला इस बात का संकेत देते हैं कि यह मार्ग एक नेशनल हाईवे है। नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) की देखरेख में इसका निर्माण किया जाता है। इस हाईवे का इस्तेमाल ज्यादातर एक राज्य से दूसरे राज्य को जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
2. हरे रंग के पत्थर:
ये राज्य राजमार्ग (State Highways) और जिला सड़कों पर लगाए जाते हैं जिनका हरा रग इस बात का संकेत देते हैं कि यह मार्ग एक स्टेट हाईवे है। हरा रंग इस बात की जानकारी देता है कि आप किसी स्टेट हाइवे पर हैं जिनका निर्माण कार्य राज्य PWD के तहत होता है।
3. काले और सफेद पत्थर:
ये जिले की सड़कों या ग्राम मार्गों पर लगाए जाते हैं जिनका कला रग इस बात का संकेत देते हैं कि यह ग्राम मार्ग है जिनका निर्माण कार्य प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत किया जाता है। है।
4. नीले और सफेद पत्थर:
शहरी क्षेत्रों और मेट्रो शहरों में नीले रंग के पत्थरों का निर्माण नगर निगम के तहत होता है। इन पर मुख्य रूप से आस-पास के औद्योगिक स्थानों की दूरी लिखी होती है।
किमी पत्थर को मील का पत्थर क्यों कहा जाता है
किलोमीटर पत्थर (Km Stone) को “मील का पत्थर” (Milestone) कहने की परंपरा भारत में अंग्रेजों के समय से चली आ रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में मापन प्रणाली में पहले मील का उपयोग होता था, और सड़क मार्ग पर दूरी को मीलों में मापा जाता था।
अंग्रेजी शासन के दौरान भारत में किलोमीटर शब्दावली की जगह मील (mile) शब्द का उपयोग अधिक होता था। उस समय सड़कों पर दूरी मीलों में लिखी जाती थी, और हर मील पर पत्थर लगाकर दूरी का संकेत दिया जाता था।
भारत ने 1956 में मीट्रिक प्रणाली (किलोमीटर) को अपनाया, लेकिन “मील का पत्थर” एक सांस्कृतिक और भाषाई परंपरा बन चुकी थी। इसलिए, यह नाम आज भी चलन में है