Jalebi Kaha Invent Hui Thi | जलेबी की असली शुरुआत
जलेबी… ये नाम सुनते ही जीभ पर मिठास घुल जाती है। गरमा–गरम तेल में तली हुई, फिर शक्कर की चाशनी में भीगी हुई ये मिठाई सिर्फ खाने की चीज़ नहीं, बल्कि खुशियों की पहचान बन चुकी है। चाहे सुबह का नाश्ता हो, शादी–ब्याह हो या त्योहार – बिना जलेबी के मज़ा अधूरा लगता है। लेकिन एक दिलचस्प सवाल है – आखिर ये जलेबी आई कहाँ से? ( Jalebi Kaha Invent Hui Thi ) क्या ये हमारी सदियों पुरानी भारतीय मिठाई है, या फिर विदेश से आई हुई मेहमान?
जलेबी की असली शुरुआत | Jalebi In India
ज्यादातर लोग मानते हैं कि जलेबी पूरी तरह भारतीय मिठाई है, लेकिन हकीकत थोड़ी अलग है। असल में जलेबी की शुरुआत फारस (आज का ईरान) से हुई थी। वहां इसे ज़ुलबिया या ज़लाबिया कहा जाता था। ये मिठाई खासकर रमज़ान और त्योहारों के मौके पर बनाई जाती थी। लोगों का मानना था कि ये मिठाई खाने से खुशियां दोगुनी हो जाती हैं। उस दौर में ज़ुलबिया को तवे या बड़े पैन पर बनाया जाता था और इसे शहद या शक्कर की चाशनी में डुबोकर परोसा जाता था। यानी, फारस के लोग जलेबी का मज़ा हमसे बहुत पहले ही ले रहे थे।
जलेबी का भारत सफर
अब सवाल ये है कि फारस से भारत तक जलेबी कैसे पहुंची? दरअसल, पुराने समय में व्यापारी और यात्री अलग–अलग देशों में व्यापार और यात्रा करने जाया करते थे। इन्हीं यात्राओं के दौरान फारस के लोग अपने साथ ज़ुलबिया लेकर भारत आए। जब भारतीयों ने इस मिठाई का स्वाद चखा तो वे इसके दीवाने हो गए। धीरे–धीरे ये मिठाई भारत की गलियों, बाजारों और रसोइयों में जगह बनाने लगी। समय के साथ ज़ुलबिया का नाम बदलकर जलेबी हो गया और ये हमारी परंपरा का हिस्सा बन गई।
भारत में जलेबी की लोकप्रियता
भारत में आते ही जलेबी ने अपना रंग–ढंग बदल लिया। यहां के लोग खाने–पीने में अलग–अलग प्रयोग करना पसंद करते हैं। गुजरात और राजस्थान में इसे फाफड़ा के साथ खाया जाने लगा। वहीं, शादी–ब्याह और बड़े आयोजनों में जलेबी को रबड़ी के साथ परोसने का रिवाज़ शुरू हुआ। ठंडी सर्द रातों में गरम–गरम दूध के साथ जलेबी खाने का मज़ा ही कुछ और है। यानी भारत ने जलेबी को सिर्फ अपनाया ही नहीं, बल्कि इसे अपनी संस्कृति और परंपरा से जोड़ दिया। आज ये हर त्योहार और हर खास मौके की शान है।
तो अब साफ है कि जलेबी सिर्फ एक भारतीय मिठाई नहीं है, बल्कि दुनिया घूमकर आई हुई ग्लोबल स्वीट है। फर्क बस इतना है कि भारत ने इसे अपने खास अंदाज़ में ऐसा रंग दिया कि अब ये हमारी पहचान बन चुकी है। आज जलेबी सिर्फ मिठाई नहीं, बल्कि खुशियों की डोर है जो हर मौके पर हमें जोड़ती है।